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पंचांग देखे बिना तिथि बताना

क्या पंचांग या कैलेण्डर देखे बिना हिंदी महीना, पक्ष (पखवाड़ा) और तिथि बताई्र जा सकती है? इस प्रकार का उत्तर हां में दें तो यह एक प्रकार का चमत्कार ही माना जाएगा। किंतु वास्तव में यह कोई चमत्कार नहीं बल्कि एक पूर्णतया शास्त्रीय विधि है, जिसे हम वैज्ञानिक विधि भी कह सकते हैं। विज्ञान वह है जो कार्य और कारण में तर्कसंगत संबंध स्थापित करे ।

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पंचांगों में भिन्नता क्यों?

इस अनुपम विशेषांक में पंचांग के इतिहास विकास गणना विधि, पंचांगों की भिन्नता, तिथि गणित, पंचांग सुधार की आवश्यकता, मुख्य पंचांगों की सूची व पंचांग परिचय आदि अत्यंत उपयोगी विषयों की विस्तृत चर्चा की गई है। पावन स्थल नामक स्तंभ के अंतर्गत तीर्थराज कैलाश मानसरोवर का रोचक वर्णन किया गया है।

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पत्नी के स्वास्थ्य का ज्ञान

सप्तम भाव व चन्द्र से पत्नी के स्वास्थ्य का ज्ञान होता है। सप्तम भाव, सप्तमेष तथा सप्तमस्थ ग्रहों से विवाह सम्बन्धी अनेक विषयों का ज्ञान होता है। परन्तु एक ही ग्रह स्थिति से पत्नी का स्वरूप ज्ञान करने के लिए चिन्तन अलग होगा, विवाह काल जानने के लिए अन्य विधियों और सूत्रों का समावेष करना होता है। चरित्र, पत्नियों की संख्या, प्रेम तत्व, वैधव्य, विलम्ब अथवा विघटन आदि के लिए जब सप्तम भाव पर विचार किया जाता है तो वही ग्रहस्थिति भिन्न-भिन्न फल प्रदान करती है।

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पुनर्जन्म व श्राद्ध कर्म

प्रत्येक प्राणी, चाहे वह इंसान हो, पशु – पक्षी होई या किट, दो तत्वों से मिलकर बना होता है.- एक तो शरीर जो हमें दिखाई देता है, और दूसरा उसमें आत्मा का वास होता है. आज के युग में मेडिकल विज्ञान ने कितनी ही तरक्की क्यों न कर ली हो परन्तु किसी भी प्राणी या व्यक्ति की मृत्यु आने पर उसको

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पेप्टिक अल्सर

आयुर्वेदिक दृष्टिकोण: आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर में अग्नि मूल है। जब तक शरीर में अग्नि संतुलित रहती है तब तक स्वास्थ्य का अनुवर्तन होता रहता है। इसलिए शरीर में प्राण और स्वास्थ्य अग्नि मूलक हैं। शरीर में मंदाग्नि रहने से कई उदर रोग उत्पन्न होते हैं। मानसिक दबाव और तनाव भरी जिंदगी जीने वालों के शारीरिक विकारों में ग्रहणी और पाचन संस्थान के रोग ज्यादातर दिखाई देते हैं जिनमें अल्सर सबसे अधिक पायी जाने वाली व्याधि है।

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प्रचेताओं को भगवान का वरदान

परमहंस, आत्मज्ञानी व भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त पूज्य गुरुदेव श्री शुकदेव बाबा के श्री चरणों में विराजमान तत्त्वाभिलाषी महाराज परीक्षित ने पूछा - भगवान् ! आपने राजा प्राचीन-बर्हि के जिन पुत्रों का वर्णन किया था, उन प्रचेताओं ने रूद्र गीत के द्वारा श्री हरि की आराधना करके क्या सिद्धि प्राप्त की और जगत् में क्या-क्या कार्यों का संपादन किया तथा किस प्रकार परमपद का लाभ प्राप्त हुआ?