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पितृ दोष: ज्योतिषीय योग एवं निवारण

शास्त्रों के अनुसार देव ऋण, ऋषि ऋण एवं पितृ ऋण का जन्म जन्मांतरों तक मानव पर प्रभाव रहता है इसलिए शास्त्रों में पितृ देवो भवः, आचार्य देवो भवः, मातृ देवो भवः आदि संबोधन दिए गये हैं। वैसे ऋण का अर्थ है कर्ज, जिसको उसकी संतान व परिजनों द्वारा चुकाया जाना है। जब जातक पर उसके पूर्वजों के पापों का गुप्त प्रभाव पड़ता है तब पितृ दोष कहलाता है।

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पितृ दोष: समस्या और समाधान

जन्मपत्री का नवम भाव भाग्य भाव कहलाता है। इसके अतिरिक्त इस भाव से पिता और पूर्वजों का विचार भी किया जाता है। धर्म शास्त्रों में यह मान्यता है कि पूर्व जन्म के पापों के कारण पितृ दोष का निर्माण होता है। व्यक्ति का जीवन सुख-दुःख से मिलकर बना होता है। किसी न किसी रुप में दुःख व्यक्ति के सदैव साथ बने रहते हैं। इस संसार में कोई भी व्यक्ति पूर्णतः सुखी नहीं है। कभी संतानहीनता, कभी नौकरी में असफलता, धन हानि, परिवारिक तनाव और कभी उन्नति न होने के कारण व्यक्ति को दुःख अपने प्रभाव में लिए रहते हैं।

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पित्ताशय की पथरी

पित्ताशय की पथरी ज्यादातर 40 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में पाई जाती है। इससे यह अभिप्राय नहीं कि छोटी आयु में यह रोग हो ही नहीं सकता। खाने-पीने में अनियमितता और अनियंत्रित आहार ग्रहण करने से इस रोग की शुरूआत होती है। यह रोग उन लोगों को होने की संभावना अधिक होती है जो बैठकर कार्य करते हैं या जिनको हृदय या मधुमेह जैसी बीमारी होती है।

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पितृदोष संबंधी अशुभ योग एवं उनके निवारण के उपाय

पितृदोष से तात्पर्य पितरों की असंतुष्टि से है। जब किसी परिजन के द्वारा अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध इत्यादि कर्म नहीं किया जाए अथवा इन कर्मों को पितरों के द्वारा नकार दिया जाए, तो पितर असंतुष्ट होकर जो हानि पहुंचाते हैं, उसे ही पितृदोष कहते हैं। पितृदोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति, गोचर और दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते। पितृदोष अदृश्य बाधा के रूप में जातक को परेशान करता है और उसके जीवन में सभी क्षेत्रों में उन्नति को बाधित कर देता है। परिजनों के मध्य वैचारिक मतभेद रहते हैं अथवा प्रयासों से कोई शुभ फल प्राप्ति का योग बने तो वह भी अकारण समाप्त हो जाता है।

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पितृदोष/ऋण का सार्थक विवेचन

जहां ‘कालसर्प योग’ में राहु व केतु की प्रमुख भूमिका होती है वहीं ‘पितृ दोष’ में राहु व शनि की भूमिका बताई जाती है। कुछ आचार्य इसे ‘पितृ ऋण’ की संज्ञा देते हैं। ‘कालसर्प योग’ के समान ही ‘पितृ दोष/ऋण’ से ग्रसित होने के लक्षण इस प्रकार बताए जाते हैं- कार्यों में असफलता, धन की कमी, विवाह तथा संतान कष्ट, परिवार के सदस्यों से मतभेद, किसी न किसी रोग से ग्रसित रहना, आदि।

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पिरामिड ऊर्जा शक्ति

शरीर को स्फूर्तिवान बनाने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है। पिरामिड अपनी विशिष्ट आकृति के कारण उपयोगी ऊर्जा का प्रसार करते हैं। इनसे प्राप्त ऊर्जा का उपयोग अनेकानेक रोगों एवं मानसिक तनाव को दूर करने के लिए किया जा सकता है। मानव जीवन के लिए ये किस प्रकार उपयोगी होते हैं, आइए जानें...

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पिरामिड का वास्तु में उपयोग

प्रश्न: वास्तु दोष सुधार हेतु भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में बिना तोड़े फोड़े क्या उपाय किये जा सकते हैं? वास्तु उपायों में पिरामिड का उपयोग किस प्रकार किया जाना चाहिए? पिरामिड किस धातु का, कितनी दूरी पर तथा कितनी संख्या में लगाने चाहिये आदि की विस्तृत जानकारी दें।