शास्त्रों के अनुसार देव ऋण,
ऋषि ऋण एवं पितृ ऋण
का जन्म जन्मांतरों तक मानव पर
प्रभाव रहता है इसलिए शास्त्रों में
पितृ देवो भवः, आचार्य देवो भवः,
मातृ देवो भवः आदि संबोधन दिए
गये हैं। वैसे ऋण का अर्थ है कर्ज,
जिसको उसकी संतान व परिजनों
द्वारा चुकाया जाना है। जब जातक
पर उसके पूर्वजों के पापों का
गुप्त प्रभाव पड़ता है तब पितृ दोष
कहलाता है।
बाबुलाल शास्त्री | 15-Sep-2016
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