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पांच अंगों का संयोग : पंचांग

इस अनुपम विशेषांक में पंचांग के इतिहास विकास गणना विधि, पंचांगों की भिन्नता, तिथि गणित, पंचांग सुधार की आवश्यकता, मुख्य पंचांगों की सूची व पंचांग परिचय आदि अत्यंत उपयोगी विषयों की विस्तृत चर्चा की गई है। पावन स्थल नामक स्तंभ के अंतर्गत तीर्थराज कैलाश मानसरोवर का रोचक वर्णन किया गया है।

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पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों की सरगर्मी व ज्योतिष

उत्तरप्रदेश भारतीय जनता पार्टी उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों में मुख्यतः भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी तथा समाजवादी पार्टी मैदान में हैं। अन्य पार्टियां कमजोर प्रतीत हो रही हैं। भारतीय जनता पार्टी व नरेन्द्र मोदी की कुण्डली के अनुसार अभी वर्तमान में साढ़ेसाती चल रही है। भारतीय जनता पार्टी की कुण्डली में गोचर के शनि व पार्टी गठन काल के चन्द्रमा की डिग्री में बहुत कम अन्तर है अतः ऐसा प्रतीत होता है कि दिन-प्रतिदिन पार्टी की स्थिति और मजबूत होती जाएगी और आगामी चुनावों में भारतीय जनता पार्टी या तो स्पष्ट बहुमत प्राप्त करेगी अथवा स्पष्ट बहुमत के बहुत निकट रहेगी।

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पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों में किसका खुलेगा भाग्य, किसका जाएगा ताज, किसको आएगी लाज

निर्वाचन आयोग पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीख घोषित कर चुका है। प्रत्येक राज्य में विभिन्न चरणों में मतदान होंगे। इन पांच राज्यों में से उŸार प्रदेश और उŸाराखंड का चुनावी परिदृश्य क्या होगा?

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पाब्लो पिकासो

आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे शख्स की जिसने बीसवीं सदी को रंग और रेखाएं दीं, जिनका जीवन सजा अनगिनत रंगों से, जी हां हम बात कर रहे हैं चित्रकार पाब्लो पिकासो की। पिकासो का जन्म हुआ 25 अक्तूबर 1881 को मलागा (स्पेन) में। उनकी मां मारिया और पिता ब्लाॅस्को जो कि आर्ट टीचर भी थे, ने बचपन में ही पिकासो में छिपी प्रतिभा को पहचान लिया था।

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पारिवारिक कलह: कारण एवं निवारण

ज्येतिष में सप्तम भाव अपने साथी का भाव माना गया है- वह जीवन साथी हो या व्यापार मंे साझेदार। सप्तम भावेश लग्नेश का सर्वदा शत्रु होता है। जैसे मेष, लग्न के लिए लग्नेश हुआ मंगल एवं सप्तमेश हुआ शुक्र और दोनों में आपस में शत्रुता है। शायद हमारे ऋषि मुनियों को यह ज्ञात था कि साथ में कार्य करने वालों में मतभेद होता ही है, इसलिए उन्होंने इस प्रकार के ज्योतिष योगों का निर्माण किया।

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पितृ ऋण और पितृ पक्ष

भारतीय धर्म ग्रंथों में मनुष्य को तीन प्रकार के ऋणों-देवऋण, ऋषिऋण व पितृऋण से मुक्त होना आवश्यक बताया गया है। इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है। पितृऋण यानि हमारे उन जन्मदाता एवं पालकों का ऋण, जिन्होंने हमारे इस शरीर का लालन-पालन किया, बड़ा और योग्य बनाया। हमारी आयु, आरोग्य एवं सुख-सौभाग्य आदि की अभिवृद्धि के लिए सदैव कामना की। यथासंभव प्रयास किए, उनके ऋण से मुक्त हुए बिना हमारा जीवन व्यर्थ ही होगा।

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पितृ ऋण, मातृ ऋण आदि की व्याख्या एवं फलादेश

पितृ ऋण अर्थात् पितरों (पूर्वजों) का ऋण। पिता का ऋण (कर्ज) बाद में पुत्र ही चुकाता है, यही परंपरा है। श्रवण के माता-पिता ने दशरथ को शाप दिया, ‘‘जैसे हम पुत्र वियोग में मर रहे हैं वैसे ही आप भी पुत्र वियोग में मरेंगे।’’ महाराज दशरथ पुत्र वियोग में मरे, यह उनका दोष था। लेकिन पुत्र राम को भी पितृ-ऋण चुकाने हेतु अंत तक घोर कष्ट भोगने पड़े। स्पष्ट है कि आपको जो फल मिल रहा है,वह केवल आपके कर्मों का ही फल नहीं होता है। आपको अपने पूर्वजों के कर्मों के फल भी भोगने होते हैं क्योंकि आप अपने पूर्वजों के वंशज हैं।