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वास्तु शास्त्र की भूमिका

मानव शरीर इस सृष्टि के ही अंगभूत पंच तत्वों यथा पृथ्वी, जल आकाश, अग्नि और वायु ये पंच महाभूत नैसर्गिक ऊर्जाओं के साथ मिलकर महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। हम इस धरा पर कहीं भी निवास करें, अपनी जीवन शैली को इन पंच तत्वों व नैसर्गिक ऊर्जाओं के अनुरूप ढालना अनिवार्य है। इसी में अंतर्निहित है, वैश्विक मांगल्य में वास्तुशास्त्र की भूमिका।

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विक्रम संवत् 2074 में ग्रह गोचर और भारत का भविष्यफल

गणतंत्र दिवस के 68वें वर्ष प्रवेश कुंडली (वर्ष कुंडली) में भारत वर्ष 26 जनवरी 2017 ई., गुरुवार, चतुर्दशी तिथि, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्रकालीन वृष लग्न में प्रवेश करेगा। वर्ष लग्नेश शुक्र दशम भाव में केतु से युक्त है। नवम भाव योजना विकास का है। वहां सूर्य शत्रु राशि में स्थित है। उस पर गुरु व शनि की शत्रु व नीच दृष्टियां पड़ रही हैं।

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विज्ञान से अधिक जानता है ज्योतिष विज्ञान

विज्ञान और ज्योतिष दोनों का विषय क्षेत्र ब्रह्मांड है। ऋग्वेद आदि ग्रंथों में चंद्र और सोम के संबंध में विशद चर्चा की गई है। प्रसिद्ध ग्रंथ जिंदावेस्ता में भी चंद्र से संबद्ध उल्लेख मिलता है। इन ग्रंथों में चंद्र का सोम से निकट का संबंध बताया गया है और सोम को इंद्र से भी अधिक महत्व दिया गया है। यहां उसी चंद्र के ज्योतिष से संबंध का वर्णन प्रस्तुत है...

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विज्ञान से अधिक जानता है ज्योतिष विज्ञान

चंद्रमा पर मानव के चरण पड़ चुके है। किन्तु अभी उसे यह जानने में बहुत समय लगेगा की विश्व का वातावरण बनाने में चंद्र की क्या भूमिका है। सौर और चंद्र वातावरण के संपर्क-संघर्ष से कौन सी शक्ति उत्पन्न होती है, जो हम पृथ्वीवासियों के लिए उपादेय बन जाती है।

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विद्या प्राप्ति व उच्च शिक्षा के योग

जातक की कुंडली से कैसे जानें कि उसकी विद्याध्ययन में रूचि होगी और वह मेधावी छात्र बन पाएगा कि नहीं? शिक्षा में अवरोध उत्पन्न करने वाले क्या कारण है ? उनके उपाय और उच्च शिक्षा में सफलता प्राप्ति हेतु क्षेत्र का चुनाव आदि विषयों की जानकारी प्रस्तुत लेख में दी गई है।

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विद्या बाधा निवारण के टोटके

विद्या में बाधा उत्पन्न होना एक गंभीर विषय है। विद्या के अभाव से आज किसी भी व्यक्ति द्वारा जीवन को ठीक प्रकार से जी पाना असंभव है। प्रत्येक कार्य में किसी न किसी ग्रह एवं भाव की भूमिका होती है। विद्या के लिए ज्योतिषीय आधार पर निम्न कारक हैं: 1. पंचम भाव एवं पंचमेश 2. नवम भाव एवं नवमेश 3. विद्या का मुख्य कारक देव गुरु बृहस्पति तथा द्वितीय भाव एवं उसका स्वामी।

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विद्या बाधा: कारण एवं निवारण

ज्योतिष शास्त्र में विद्या प्राप्ति हेतु पंचम भाव, द्वितीय भाव के स्वामियों की स्थिति, पंचम तथा द्वितीय भाव में स्थित ग्रह, पंचमेश तथा द्वितीयेश के साथ शुभ तथा अशुभ ग्रहों की युति, कुंडली में चंद्रमा, सूर्य, बृहस्पति तथा बुध ग्रह की स्थिति तथा इन पर पड़ने वाले शुभ तथा अशुभ ग्रहों की दृष्टि एवं युति, दशमेश तथा दशम भाव की स्थिति के साथ-साथ चतुर्विंशांश कुंडली एवं कारकांश कुंडली के अध्ययन से शिक्षा की प्राप्ति एवं बुद्धि तथा तर्कशक्ति के बारे में आकलन किया जाता है।

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विदेश गमन में प्रभावी ज्योतिषीय कारक

आज विदेश जाने की ललक हर किसी के मन में है। अधिकतर लोग तो विदेश में स्थायी रोजगार को ध्यान में रखकर ही शिक्षा अर्जित करते हैं। विदेश जाने के प्रयास सभी लोग करते हैं लेकिन सफलता सभी को नहीं मिलती। किन ग्रह दशाओं में विदेश यात्रा के योग बनते हैं आइए जानें...