प्रत्येक समाज में विवाह के रीति रिवाज समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों की उपस्थिति में धर्मगुरूओं द्वारा संपादित किये जाते रहे हैं, इसलिये यह कार्य, अलिखित होते हुये भी, स्थायी माने जाते रहे हैं। लेकिन शायद अब, आज के समय में, उसकी आवश्यकता नहीं रह गयी है या नहीं समझी जाती है। फलस्वरूप ये संबंध अस्थायी और विवादास्पद बनते जा रहे हैं।
संजय बुद्धिराजा | 01-Jan-2014
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