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राहु द्वारा निर्मित योग और उनका फल

ज्योतिष में राहु नैसर्गिक पापी ग्रह के रूप में जाना जाता है। राहु को Dragon's Head तथा North Node के नाम से भी जाना जाता है। राहु एक छाया ग्रह है। इनकी अपनी कोई राषि नहीं होती। अतः यह जिस राषि में होते हैं उसी राषि के स्वामी तथा भाव के अनुसार फल देते हैं। राहु केतु के साथ मिलकर कालसर्प नामक योग बनाता है

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राहु: शुभ अथवा अशुभ

ज्योतिष की दृष्टि से हमारे जीवन में घटित होने वाली शुभ या अशुभ प्रत्येक घटना नव ग्रहों पर ही आधारित होती है और नवग्रहों में ही राहु का नाम विशेष चर्चा में रहता है। जन्मकुंडली में राहु का नाम सुनते ही व्यक्ति अनिष्ट की आशंका करने लगा है जो की काफी हद तक सही भी है परन्तु प्रत्येक स्थिति में नहीं।

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राहु-केतु का फलकथन

राहु केतु के फलकथन का आधार क्या होना चाहिए और जीवन की लंबी अवधि के कितने वर्ष इन छाया ग्रहों से प्रभावित रहते हैं तथा किन ग्रह योगों के साथ ये शुभ या अषुभ फल देते हैं तथा विभिन्न स्थितियों में राहु और केतु की दषा क्या फल प्रदान करती है इसके बारे में उदाहरण कुंडलियों की सहायता से परिस्थितियों का विस्तृत विष्लेषण किया गया है।

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राहु-केतु का राशि परिवर्तन

ज्योतिष में नव ग्रह ही फलित ज्योतिष का मुख्य आधार है जो बारह राशियों में सदा भ्रमणशील रहते हैं। इन ग्रहों के गोचरीय भ्रमण से ही प्रत्येक प्राणी के जीवन में विभिन्न उतार-चढ़ाव या शुभ-अशुभ घटनायें समय-समय पर घटती हंै। नव ग्रहों में भी राहु और केतु के नाम से हर व्यक्ति के मन में भय व्याप्त रहता है क्योंकि इन्हें क्रूर या उग्र ग्रहों की श्रेणी में रखा गया है और दोनों आकस्मिक घटनाओं के कारक हैं। जन्मकुंडली में जहां ग्रहों की दशाएं मनुष्य जीवन को प्रभावित करती हैं वहीं ग्रहों के गोचरीय राशि परिवर्तन का भी मनुष्य जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। राहु-केतु सदैव परस्पर समसप्तक रहते हैं और एक राशि में लगभग डेढ़ वर्ष गोचर करते हैं। इस बार राहु-केतु का राशि परिवर्तन 29 जनवरी 2016 को होगा। 29 जनवरी को राहु सिंह (5) और केतु कुंभ (11) राशि में प्रवेश करेगा क्योंकि राहु-केतु बाधाकारक ग्रह है। अतः इस परिवर्तन से कुछ राशियों की समस्याएं समाप्त होंगी और कुछ के लिये संघर्ष बढ़ेगा। विशेष रूप से राहु के राशि परिवर्तन से वृष, कन्या और मकर राशि की समस्याएं बढ़ेंगी और केतु से कर्क, वृश्चिक और मीन राशि विशेष प्रभावित होगी।

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राहु-केतु की परम अशुभ फलदाई स्थिति

राहु-केतु का बिंदु मात्र अस्तित्व होने पर भी इनके मानव जीवन पर पड़ने वाले अशुभ प्रभाव के कारण हमारे परम ज्ञानी व दिव्यदृष्टि ऋषियों ने उन्हें छाया ग्रह की संज्ञा दी है, और पापी ग्रहों की श्रेणी में शनि व मंगल के साथ रखा है। इनको शनिवत् राहुः कुजावत् केतुः’ कहा है। (फलदीपिका-8.34)।

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राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी की कुण्डलियों का तुलनात्मक विवेचन

2014 में होने वाले संसदीय चुनाव के संदर्भ में बी.जे.पी. की ओर से भी नरेन्द्र मोदी पहले ही प्रधानमंत्री पद के लिए मनोनीत हैं। कांग्रेस पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में श्री राहुल गांधी के नाम के कयास लगाये जा रहे हैं। इनकी कुंडलियों का व्याख्यान इस प्रकार है....

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रोग कारक - शनि

सौर मंडल में नौ ग्रह विद्यमान हैं जो समस्त ब्रह्मांड, जीव एवं सभी क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं। प्रत्येक ग्रह की अपनी विशेषतायंे हैं जिनमें शनि की भूमिका महत्वपूर्ण है। शनि को दुःख, अभाव का कारक ग्रह माना जाता है। जन्म समय में जो ग्रह बलवान हों उसके कारक तत्वों की वृद्धि होती है एवं निर्बल होने पर कमी होती है किंतु शनि के फल इनके विपरीत हैं। शनि निर्बल होने पर अधिक दुख देता है व बलवान होने पर दुख का नाश करता है।

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रोग निवारण में ज्योतिष विज्ञान का महत्व

ज्योतिष ‘‘विज्ञान’’ एवं ‘‘अध्यात्म’’ का मित्र या ‘मिश्रित’ रूप है। रोग के क्षेत्र में चिकित्सा विज्ञान के साथ ही ज्योतिष विज्ञान के ग्रह एवं नक्षत्रों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में नौ ग्रहों के लिए नौ रंग एवं नौ रत्नों की प्राथमिकता प्रमाणित है।