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महानायक की दुर्घटना

प्रत्येक मनुष्य का जन्म या तो दिन अथवा रात्रि, कृष्ण पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष एवं सप्ताह के किसी एक वार को होता है। पंच पक्षी पांच तात्त्विक स्पंदन के आधार पर पांच तरीके से शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष में चंद्र के बढ़ते एवं घटते कलाओं के प्रभाव के अनुरूप कार्य करते हैं। इन पांचों तत्वों का स्पंदन 5 स्तरों में एक निश्चित समयावधि के लिए क्रियाशील रहता है। पक्षियों की क्रियाविधि एवं क्रियाशीलता में पक्ष, तिथि एवं दिवस के आधार पर परिवर्तन आता रहता है। यदि इनमें से कोई एक अपनी उच्च अवस्था में होता है तो दूसरे चार अन्य भिन्न अवस्थाओं में घटते हुए क्रम में होते हैं। हममें से प्रत्येक किसी एक पक्षी के प्रभाव में रहते हैं।

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महिलाएं एवं आभूषण

मुख्यतया सभी महिलाओं को सजने संवरने का शौक होता है और जब बात आभूषण की आए तो यह रूचि और भी बढ़ जाती है। किसी को पारंपरिक डिजाइन ही अच्छे लगते हैं तो कोई किसी ठवसक च्पमबम या नवीनतम डिजाइन की तलाश में लगी रहती हैं। किसी को सिर्फ सोने के बने आभूषण ही लुभाते हैं तो कोई काॅस्ट्यूम ज्वैलरी को अपनाने में हिचकते नहीं। इनमें रत्नों का विशेष महत्व आ जाता है। किसी को रूबी रत्न भाता है तो किसी को डायमंड अधिक पसंद आता है।

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मांगलिक दोष विचार

1. शास्त्रों में उल्लेख संक्षिप्त नारद पुराण के पूर्व भाग, द्वितीय पाद, श्लोक 435-438 में विवाह के इक्कीस दोष बताये गये हैं। इनमें से छठा दोष है “भौम महादोष” अर्थात मंगल का लग्न से अष्टम भाव में होना। श्लोक 435-438 में कहा गया है कि यदि मंगल उच्च का हो एवं तीन शुभ ग्रह लग्न में हों तो इस लग्न का त्याग नहीं करना चाहिये (अर्थात, ऐसी स्थिति में अष्टम मंगल का दोष खत्म हो जाता है)। गौर करें कि हमारे पुराण ने ही परिहार का रास्ता भी दिखाया है।

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मांगलिक योग: दांपत्य जीवन में दोष एवं निवारण

जिस जातक की जन्मकुंडली में मंगल चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश भावों में स्थित होता है, उसे मांगलिक कहा जाता है। उपरोक्त भावों के अलावा द्वितीय भाव में मंगल की स्थिति को भी मंगली दोष मानते हैं। अर्थात यदि वर की जन्मकुंडली के उपयुक्त भावों में से किसी भाव में मंगल हो तो वर या वधू के जीवन को खतरा हो सकता है।

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माता-पिता और संतान की शिक्षा का आपसी संबंध

हस्तरेखायें एक दर्पण की भांति हैं जो हमें भावी जीवन के साथ-साथ वर्तमान की भी तस्वीर दिखलाती हैं। संतान का जो अपना भाग्य होता है वह तो उसके जीवन में प्रभाव डालता ही है, उसके माता-पिता के हाथ से भी यह स्पष्ट होता है। उनका भी प्रभाव संतान पर पड़ता है। माता-पिता के हाथ से यह पता चलता है कि उनकी संतान कैसी होगी, उनकी सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक आदि स्थिति कैसी रहेगी। यह सब तो हम अविवाहित युवक युवतियों के हाथ से भी देख सकते हैं कि उनकी आने वाली संतान पर उनका क्या प्रभाव होगा।।

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मानव जीवन में ज्योतिष शास्त्र की सार्थकता

ज्योतिष शास्त्र का मानव जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। ईश्वर ने प्रत्येक मानव की आयु की रचना उसके पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार की है, जिसे कोई भी नहीं बदल सकता विशेषरूप से मनुष्य के जीवन की निम्नांकित तीन घटनाओं को कोई नहीं बदल सकता: 1. जन्म 2. विवाह 3. मृत्यु।