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मंगल दोष के उपाय

विवाह से पहले मंगल दोष के परिहार एवं शांति के अनेक उपाय हैं जिससे इस दोष से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। इसमंे मंगल स्तोत्र, मंगल के 108 नामों का जाप, मंगल कवच, मंगल चण्डिका स्तोत्र जाप, मंगल व्रत, मंगल दान, मंगल रत्न, अंगकारक स्तोत्र, मंगल यंत्र धारण आदि अनेक उपाय हैं। ज्योतिषी से परामर्श लेकर ही मंगल दोष का उपाय करना चाहिये।

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मंगल दोष,परिहार और ग्रहों की भूमिका

भारतीय ज्योतिषशास्त्र ने वैदिक काल से ही कष्ट, दुःख और सन्ताप से पीड़ित मानवता को आधार और सम्बल प्रदान किया है। जब प्रत्यक्ष, अनुमान आदि के आश्रय से भी समस्याओं का समाधान नहीं मिल पाता था तो ज्योतिष शास्त्र अपने प्रभाव से मानव मात्र के अज्ञान, कष्ट, दुःखादि अंधकार को नष्ट कर सर्वत्र प्रसन्नता व संतोष के वातावरण का निर्माण करता रहा है। मनुष्य के जन्म से लेकर उसकी मृत्युपर्यन्त समस्त महत्वपूर्ण घटनाओं का पूर्वानुमान और अनिष्टों का परिहार ही ज्योतिषशास्त्र का उद्देश्य है। मनुष्य के जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना विवाह है और इस महत्वपूर्ण विषय को प्रभावित करने वाले ग्रहयोगों में मंगलदोष अथवा कुजदोष अपने अशुभ प्रभावों के कारण सर्वाधिक डाॅ. राजीव रंजन कुख्यात ज्योतिषीय ग्रहयोग है।

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मंगल दोष: कुछ दृष्टांत

इनका विवाह बुध/शनि दशा में 23-1-2004 को हुआ। द्वादश भावस्थ यह मंगल मंगल दोष कारक है। 2 अंशों पर होने से यह ग्रह बाल्य अवस्था में है। नवांश, दे्रष्काण, सप्तांश, द्वादशांश, त्रिशांश आदि में इनका मंगल मेष राशि में ही है। अतः योग कारक होकर वर्गोत्तम स्थिति में है। शुभ फल ही घटित होना चाहिये। परंतु स्थिति इसके ठीक विपरीत तो नहीं कहेंगे पर संतोषजनक भी नहीं कह सकते।

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मंगलकारी मंगल ग्रह

मंगल की ग्रीष्म ऋतु मानी गयी है। पुराणों के मतानुसार मंगल देवताओं के सेनापति थे। इन्होंने तारकासुर का वध किया था। ऋषि श्री पराशर के मतानुसार मंगल के वस्त्र लाल रंग के, श्री कल्याण वर्मा के अनुसार मंगल के वस्त्र मोटे और बहुत दिन तक चलने वाले हैं। मंगल वेदों में साम वेद का अधिकारी है। कुछ विद्वानों के अनुसार मंगल अथर्ववेद के कारक हैं। इसका भ्रमण स्थान घने जंगल हैं, जहां पर भयानक जानवर रहते हैं।

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मंगली होना दोष नहीं, बल्कि योग है

मंगली होना दोष नहीं, बल्कि योग है: सामान्यतः मांगलिक पत्रिका वाले जातक प्रतिभा संपन्न होते हैं तथा उनमें विशेष गुण पाये जाते हैं। मांगलिक होने का विशेष गुण यह है कि जातक किसी भी कार्य को पूर्ण लगन एवं निष्ठा से करता है। आईये इसे विभिन्न लग्नों में देखने का प्रयास करते हैं

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मंगलीक एवं गैर मंगलीक कुंडलियों का उदाहरण सहित तुलनात्मक अध्ययन

ज्योतिषीय दृष्टि से जन्मांग का सप्तम, द्वितीय, द्वादश (पुरुषों के मामलें में) और अष्टम (स्त्रियों के मामले में) भाव, सप्तमेश, द्वितीयेश, द्वादशेश और अष्टमेश तथा वैवाहिक सुख प्रदाता शुक्र वैवाहिक सुख, गृहस्थ सुख से संबंधित भाव, भाव के स्वामी ग्रह और उनके कारक आदि सभी अनुकूल रहते हों तो उन दम्पत्तियों का गृहस्थ जीवन एवं पति-पत्नी के संबंधों के लिए महत्वपूर्ण माने गये हैं।