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शारीरिक हाव-भाव द्वारा पुरूष व्यक्तित्व की पहचान

उदर (पेट) जिस व्यक्ति का पेट आगे को निकला हुआ हो, यह शुभ लक्षण नहीं है। जबकि ऐसा व्यक्ति जिसका उदर बराबर सा हो, वह धन ऐश्वर्य संपन्न होता है। जिसका पेट घड़े के समान हो, यह निशानी दरिद्रता की है। जिसका पेट व्याघ्र या सिंह की तरह हो, वह व्यक्ति राजा होता है। जिस व्यक्ति का पेट चारों ओर से बराबर हो वह धनी होता है। मेढ़क की तरह से पेट होने से व्यक्ति राजा, बैल या मोर की तरह से पेट होने से व्यक्ति भोगी होता है। गोल पेट होना सुखी होने की निशानी है। वक्ष (छाती) जिस मनुष्य की छाती समतल हो, वह मनुष्य धनी होता है। यदि ऊंची-नीची हो तो शस्त्र से मृत्यु होती है। यदि छाती पुष्ट और मोटी हो तो मनुष्य बहादुर होता है। पतली छाती वाला मनुष्य सदा रूपये पैसे के लिए लालायित रहता है। छाती पर खूब रोएं हों तो यह लक्षण शुभ समझना चाहिए। कंधे (स्कंध) जिस व्यक्ति के कंधे ऊंचे, बड़े और मांसल हों तो ऐसा व्यक्ति बहादुर होता है। यदि हाथी, बैल, सुअर की तरह कंधे हों तो वह मनुष्य महाभोगी, महाधनी, उच्च पदाधिकारी होता है। कंधों का मांसहीन होना या छोटा गड्ढेदार होना अच्छा लक्षण नहीं है। कंधे पर रोम होना भी दरिद्रता का चिह्न है।

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शास्त्रीय धन योग

भागवतम के अनुसार भोग-विलास का फल इन्द्रियों को तृप्त करना नहीं है, उसका प्रयोजन है केवल जीवन निर्वाह। जीवन का फल भी तत्त्व जिज्ञासा है, बहुत कर्म करके स्वर्गादि प्राप्त करना उसका फल नहीं है। शास्त्रीय ज्ञान के विपरीत, वर्तमान युग में मनुष्य आर्थिक समृद्धि को ही जीवन का सार और कर्मों का फल मानता है। फलस्वरूप, वैध-अवैध साधनों द्वारा धन संग्रह करने के लिए लालायित एवं प्रयासरत रहता है।

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शिक्षा एवं परीक्षा में सफलता

विद्या प्राप्ति व परीक्षा में सफलता प्राप्ति में बाधा देने वाले ज्योतिषीय योग क्या हैं तथा इन्हंे दूर करने हेतु अचूक उपाय विद्या या शिक्षा का विचार मुख्यतः ‘पंचम’ भाव से किया जाता है। परंतु ‘विद्या’ को ‘धन’ कहा गया है अतः द्वितीय धन भाव से किसी भी बालक की प्रारंभिक शिक्षा’ का विचार किया जाता है। साथ ही चतुर्थ भाव से भी शिक्षा का निर्णय करते हैं। नवम भाव जिसे ‘भाग्य’ भाव कहते हैं, यह पंचम से पंचम भाव होने तथा दशम भाव ‘कर्म’ भाव होने से इन दोनों से भी ‘उच्च शिक्षा’ का विचार किया जाता है।

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शिक्षा के क्षेत्र में सफलता व असफलता के योग

प्रत्येक व्यक्ति का भावी जीवन स्तर उसके द्वारा अध्ययनकाल में किया गया परिश्रम ही तय करता है। अध्ययनकाल में यदि उसका परीक्षा परिणाम निरंतर अच्छा रहता है, तो प्रायः यह निश्चित होता है कि वह व्यक्ति आगे जाकर सुखी जीवन व्यतीत करेगा और उसका जीवन स्तर अच्छा होगा। यही कारण है, शिक्षा के प्रति वर्तमान समय में जागरूकता बढ़ती जा रही है। प्रत्येक अभिभावक की यह ईच्छा होती है कि उसकी संतान जीवन में अच्छे मुकाम पर पहुंचे और उसका नाम रोशन करे, लेकिन इस उद्देश्य की प्राप्ति प्रत्येक विद्यार्थी के लिए आसान नहीं होती है। शिक्षा के इतना महत्वपूर्ण होने पर भी देखा जाता है कि सभी विद्यार्थी शिक्षा के क्षेत्र में सफल नहीं हो पाते हैं। एक विद्यार्थी की कई समस्याएं हो सकती हैं। जैसे अध्ययन में मन नहीं लगना, ध्यान एकाग्र नहीं होना, स्मरण शक्ति कम होना, अध्ययनेतर गतिविधियों में अधिक लिप्त रहना आत्मविश्वास की कमी होना, मेहनत करने पर भी अनुकूल परिणाम प्राप्त नहीं होना इत्यादि। यदि ऐसी किसी समस्या

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शिक्षा का महत्व एवं उच्च शिक्षा

वर्तमान समय में शिक्षा शब्द का अर्थ आजीविका हेतु योग्यता एवं उत्तम ज्ञान प्राप्त करना है। शिक्षा मनुष्य को उदार, चरित्रवान, विद्वान और विचारवान बनाने के साथ-साथ उसमें नैतिकता, समाज और राष्ट्र के प्रति उसके कर्तव्य और मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था की भावना का संचार भी करती है। शिक्षित लोग भिन्न-भिन्न ढंग से मानवता की सेवा करते हैं।

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शिक्षा-विषय चयन में ज्योतिष की भूमिका

1. विषय प्रवेश शिक्षा की महत्ता इसी तथ्य से स्पष्ट होती है कि भारतीय हिन्दू दर्शन में शिक्षा को माँ सरस्वती की देन माना गया है और भारत में शिक्षा एक संवैधानिक अधिकार भी है। अगर अच्छे प्रारंभिक संस्कार और जातक की प्रवृत्ति अनुसार शिक्षा मिल जाये तो जातक को उन्नति और प्रगति की ओर अग्रसर होने में आसानी होती है। प्राचीन समय में शिक्षा का दायरा सीमित था। आजकल शिक्षा की अनेक सूक्ष्म शाखाएं हो गयी हैं परन्तु आधारभूत विषय तीन ही हैं साइंस, कॉमर्स और आर्ट्स।

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शिव भक्त राहु

ज्योतिष में राहु सर्प के प्रतीक हैं। वस्तुतः राहु में देवत्व के सभी गुण मौजूद हैं। ज्योतिष में राहु को तामसिक कहा गया है। राहु-केतु छाया ग्रह हैं। पाश्चात्य ज्योतिषियों के अनुसार राहु उत्तरी बिंदु पर और केतु दक्षिणी बिंदु को काटता है इसलिए राहु को राक्षस का सिर और केतु को राक्षस की पूंछ कहा गया है।