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श्री श्री रविशंकर जी

आज के इस आधुनिक युग में श्री श्री रविशंकर जी को कौन नहीं जानता। ऑर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक एवं अध्यात्म गुरु श्री श्री रवि शंकर जी की खयाति देश एवं विदेश हर जगह है। ग्रहों की कहानी और ग्रहों की जुबानी स्तंभ में हम उनके जीवन के दिव्य पक्ष को ज्योतिषीय आइने में देखने का प्रयास करते हैं।

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शरीर पर तिल होने का फल

प्रायः शरीर के अलग-अलग अंगों पर तिल के फल भी अलग-अलग होते हैं। पुरुष के शरीर पर दाहिनी ओर तिल होना शुभ एवं लाभकारी माना गया है जबकि महिलाओं के बायीं तरफ वाले तिल शुभ एवं लाभकारी माने जाते हैं। यदि किसी के हृदय पर तिल हो तो वह सौभाग्यवती होती है। किसी भी व्यक्ति के शरीर पर बारह से ज्यादा तिल होना अच्छा नहीं माना जाता। बारह से कम तिलों का होना शुभ फलदायक है। तिल मात्र सौंदर्य बोधक ही नहीं होते हैं, ये व्यक्ति के भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का संकेत भी देते हैं। शरीर के विभिन्न अंगों पर तिल की स्थिति, उनके रंग और आकृति आदि के अध्ययन से जातक के भविष्य का अनुमान लगाया जा सकता है। व्यक्ति के चेहरे पर किसी भी प्रकार के घाव आदि के चिर् िंया दाग, धब्बा आदि उसके सौंदर्य का नाश करते हैं, भले ही व्यक्ति के चेहरे का रंग गोरा अथवा सांवला हो। व्यक्ति के चेहरे पर तिल तो निश्चय ही सौंदर्यवर्धक हुआ करते हैं। तिल चेहरे की सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं। ऐसी मान्यता भी है कि व्यक्ति के चेहरे पर काले तिल उसे लोगों की बुरी नजर से बचाते हैं। इसलिए आजकल युवतियां अपने चेहरे को सुंदर बनाने के लिए कृत्तिम तिल भी बनवा लेती हैं। शरीर के विभिन्न

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श्वित्र: (सफेद दाग) ल्यूकोडर्मा

श्वित्र कोई भयंकर या जानलेवा रोग नहीं है, एक आम समस्या है फिर भी पीड़ित के मन में हीन भावनाएं उत्पन्न होती हैं जिससे पीड़ित सार्वजनिक रूप से सामने आने से कतराते हैं। आयुर्वेद में त्वचा पर आने वाले सफेद दाग-धब्बों को श्वित्र कहते हैं। आम भाषा में इसे फुलेरी भी कहते हैं। लेकिन आधुनिक विज्ञान में इसे ‘ल्यूकोडर्मा’ कहते हैं।

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शशिकला कहां से कहां

तमिलनाडु की पूर्व सर्वप्रिय मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के बाद उनकी करीबी दोस्त शशिकला नटराजन को दिसंबर में ए. आई. ए. डी. एम. के का जनरल सेक्रेटरी बना दिया गया था। जयललिता के निधन के साथ ही पार्टी में फूट पड़ने लगी थी। जयललिता ने अपनी कोई वसीयत नहीं छोड़ी जिससे किसी को पार्टी का असली उत्तराधिकारी बनाया जा सके। शशिकला ने मौके का फायदा उठाया और खुद को महासचिव पद पर पहुंचा लिया। पार्टी महा सचिव बनते ही शशिकला ने अपने करीबियों को पार्टी में अहम पद देना शुरू कर दिया और उन लोगों को भी पार्टी में जगह दी जिन्हें जयललिता ने बाहर कर दिया था।

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शादी के समय निर्धारण में सहायक योग

विवाह संबंधी प्रश्न पर विचार करते समय सर्व प्रथम कुंडली में सातवें भाव, सप्तमेश, लग्नेश, शुक्र एवं गुरु की स्थिति को ध्यान में रखना चाहिये। विवाह के लिये सप्तम भाव है। सप्तमेश को देखना इसलिये आवश्यक है क्योंकि यही इस भाव का स्वामी होता है। शुक्र इस भाव का कारक है। स्त्री/पुरूष दोनों के लिये शुक्र वैवाहिक सुख के लिये संबंधित ग्रह है। स्त्रियों के लिए गुरु पति सुख देने वाला ग्रह है।

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शादी बचपन में या 55 में

ज्योतिषीय विधान में विवाह कार्य की सिद्धि हेतु जन्म कुण्डली के सप्तम भाव तथा कारक ग्रह को देखा जाता है। लेकिन कुंडली में द्वितीय तथा एकादष भाव भी विवाह में महत्वपूर्ण होते हैं। जन्म कुंडली का सप्तम भाव जीवनसाथी तथा साझेदारी का होता है। यह अन्य व्यक्तियों के साथ व्यक्ति के सम्बंध को दर्षाता है। विवाह सम्बंधी विषय में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विवाह सम्बंधी शुभता का विचार एकादष भाव से किया जाता है । द्वितीय भाव कुटुम्ब तथा परिवार को दर्षाता है। पंचम भाव का भी विषेष महत्व है यदि विवाह में प्रेम प्रसंग भी शामिल हो।

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शादी में देरी: कारण-निवारण

वैवाहिक जीवन सुखमय बीते इसके लिए शादी से पहले गुण मिलान के साथ-साथ ग्रह मिलान भी आवश्यक है। कन्या की कुंडली में विवाह कारक बृहस्पति होता है और पुरूष की कुंडली में विवाह का विचार शुक्र से किया जाता है। यदि दोनों ग्रह शुभ हों और उनपर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ती हो तो विवाह का योग जल्दी बनता है।

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शादी में मंगल की भूमिका

हमारे देश में विवाह (शादी) के समय वर-वधू की कुंडली में मंगलीक-दोष का बहुत विचार किया जाता है। आमतौर पर मंगल के वर के लिए मंगल की वधू ठीक समझी जाती है अथवा गुरु और शनि का बल देखा जाता है। मांगलिक दोषानुसार पति या पत्नी की मृत्यु का होना माना जाता है। इस योजना के अपवाद भी हैं- लग्न में मेष, चतुर्थ में वृश्चिक, सप्तम में मकर, अष्टम में कर्क तथा व्यय भाव में धनु राशि में मंगल हो तो यह मंगल वैधव्य योग अथवा द्विभार्या योग नहीं करता।

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शाबर मंत्र: परिचय

शाबर मंत्र आम ग्रामीण बोल-चाल की भाषा में ऐसे अचूक एवं स्वयंसिद्ध मंत्र हैं जिनका प्रभाव अचूक होता है। शाबर मंत्र शास्त्रीय मंत्रों की भांति कठिन नहीं होते तथा ये हर वर्ग एवं हर व्यक्ति के लिए प्रभावशाली हैं जो भी इन मंत्रों का लाभ लेना चाहता है। थोड़े से जाप से भी ये मंत्र सिद्ध हो जाते हैं तथा अत्यधिक प्रभाव दिखाते हैं। इन मंत्रों का प्रभाव स्थायी होता है तथा किसी भी मंत्र से इनकी काट संभव नहीं है। परंतु ये किसी भी व्यक्ति द्वारा प्रयोग किए गए अन्य शक्तिशाली मंत्र के दुष्प्रभाव को आसानी से काट सकते हैं। शाबर मंत्र सरल भाषा में होते हैं तथा इनके प्रयोग अत्यंत सुगम होते हैं। शाबर मंत्र से प्रत्येक समस्या का निराकरण सहज ही हो जाता है। उपयुक्त विधि के अनुसार मंत्र का प्रयोग करके स्वयं, परिवार, अपने मित्रों तथा अन्य लोगों की समस्याओं का समाधान आसानी से कर सकते हैं।