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शनि की ढईया और साढ़ेसाती

साढ़े-साती यानि शनि का आपकी राशि के आस-पास भ्रमण। शनि जब कुंडली में चंद्रमा की स्थिति से बारहवें, प्रथम और द्वितीय स्थान पर होते हैं तब शनि की साढ़े-साती होती है, शनि जब कुंडली में चंद्रमा की स्थिति से चैथे और आठवें स्थान पर होते हैं तब शनि की ढैय्या प्रारंभ होती है।

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शनि की वक्र गति और साढ़ेसाती

एक नवंबर 2006 को शनि कर्क राशि को छोड़कर सिंह राशि में प्रवेश कर रहा है। मिथुन राशि वालों के लिए बहुत अच्छा है कि 7) वर्ष से चल रही साढ़ेसाती अब समाप्त हो जाएगी, लेकिन कन्या राशि के लिए साढ़ेसाती शुरू होकर भविष्य के अगले कुछ वर्षो ं के लिए कठिन समय का संदेश लेकर आ रही है।

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शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या का प्रभाव

प्रत्येक जातक को अपने जीवन में दो या तीन बार शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या का सामना करना ही पड़ता है। जिन जातकों की दीर्घायु होती है उनके जीवन में कुल तीन साढ़ेसाती आती है क्योंकि 30 वर्षों के पश्चात ही शनि वापस राशि में आता है। यह आवश्यक नहीं है कि शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या आपको कष्ट ही प्रदान करेंगी। अनुभव में देखा गया है कि शनि की साढ़ेसाती में लोगों ने इतनी उन्नति की है जितनी उन्होंने अपने पूरे जीवन में नहीं की। शनि की साढ़ेसाती एवं ढैय्या का प्रभाव कैसा होगा यह जातक की जन्मपत्रिका में शनि की स्थिति से पता चलता है।

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शनि ग्रह का धनु राशि से गोचर फल

सूर्य पुत्र शनि हमारे सौर मंडल में सूर्य से सबसे दूर स्थित ग्रह है। इस कारण वह कृष्ण वर्ण, ऊर्जा रहित और शीत प्रकृति ग्रह है। उसकी दृष्टि अशुभ फलदायी होती है। इस बारे में पौराणिक कथा के अनुसार पुत्र जन्म सुनकर सूर्य देव देखने के लिए अपने रथ पर सवार होकर गये। बड़ा पुरस्कार मिलने की लालसा में साथी आगे चला। शनि की सारथी पर दृष्टि पड़ते ही वह अपंग हो गया, जिस पर सूर्य ने तुरंत ही पुत्र को टांग से पकड़ कर उसे ब्रह्मांड में फेंक दिया। यह कथा पिता पुत्र की शत्रुता के कारण पर भी प्रकाश डालती है।

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शनि ग्रह: एक परिचय

शनि का उदय होना: मेष राशि का शनि उदय होगा तो जलवृष्टि, मनुष्यों में सुख, वृष राशि में सुख, घास-हरियाली में अभाव, घोड़ों में रोग, महंगाई होगी और मिथुन में उदय हो तो सुभिक्ष होगा। कर्क में उदय हो, तो वर्षा का अभाव, रसांे में शुष्कता, सर्वत्र स्त्री को भय, जनता में पीड़ा, सिंह में बच्चों को पीड़ा और राज्य में अधर्म शासन प्रकट होगा। कन्या में शनि उदय हो तो धान्य नाश, तुला में उदय में पृथ्वी में संधि और महावर्षा हो। पृथ्वी गेहूं रहित हो, तो वृश्चिक में उदय जानें। धनु में उदित शनि में, मनुष्य अस्वस्थ, रोग, स्त्री और बालकों में विषाद तथा धान्य का नाश हो। मकर में उदय हो तो युद्ध, बुद्धि का नाश, पशुओं में कष्ट, कुंभ-मीन में शनि उदय हो, तो मनुष्य दीन और धान्य की उत्पत्ति करना।

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शनि देव एक परिचय

इस संसार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो शनि के प्रभाव से अछूता हो। शनिदेव का नाम सुनते ही जनता में भय उत्पन्न हो जाता है। शनि ग्रह उतने अशुभ नहीं जितना इन्हें समझा जाता है। व्यक्ति को अध्यात्म और मोक्ष दिलाने वाले केवल शनि ग्रह ही हैं। शनि ग्रह हाथ में बीच वाली ऊंगली के नीचे होते हंै। शनि अध्यात्म, धन, ज्योतिष, दांतों के रोग, गुप्त विद्या, गुण-दोष निकालने की कला, नौकरी, सात्विक विचार आदि से संबंध रखते हंै।