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शनि देव को अनुकूल करने के 17 कारगर उपाय

शनि एकमात्र ऐसे ग्रह हैं जिनकी जयंती ज्येष्ठ अमावस्या के दिन मनायी जाती है। इस वर्ष शनि जयंती 4 जून 2016 को मनायी जायेगी। इस दिन शनिवार होने से यह जयंती विशेष एवं महत्वपूर्ण हो जाती है। हर मनुष्य के जीवन में शनि देव अपना विशेष प्रभाव डालते हैं। ज्यादातर लोग यह भी मानते हैं कि शनि देव लोगों को कठोर दंड देते हैं, यही कारण है कि ज्यादातर लोग शनि देव से बड़े भयभीत रहते हैं। यहां कुछ ऐसे उपाय दिये जा रहे हैं जिन्हें अपनाकर आप शनि देव को अनुकूल फल प्रदाता बना सकते हैं।

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शनि दशा फल

शनि को ज्योतिष में पाप ग्रह माना गया है किंतु फिर भी शनि को ही न्यायाधीश भी बनाया गया है। शनि न्याय-अन्याय का बखूबी ध्यान रखकर फल प्रदान करते हैं। शनि के आशीर्वाद के बिना कोई भी शुभ घटना फलीभूत नहीं होती। अपने भाव स्थिति के अनुसार शनि विभिन्न लग्न के जातकों को अलग-अलग फल प्रदान करते हैं।

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शनि दशा फल

शनि को ज्योतिष में पाप ग्रह माना गया है किंतु फिर भी शनि को ही न्यायाधीश भी बनाया गया है। शनि न्याय-अन्याय का बखूबी ध्यान रखकर फल प्रदान करते हैं। शनि के आशीर्वाद के बिना कोई भी शुभ घटना फलीभूत नहीं होती। अपने भाव स्थिति के अनुसार शनि विभिन्न लग्न के जातकों को अलग-अलग फल प्रदान करते हैं।

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शनि बिगाड़े शनि सुधारे सब काम

जन्मपत्रिका में शनि भाव विशेष में स्थित होकर हमें हमारे कर्मों के हिसाब से फल प्रदान करते हैं जैसे- यदि केंद्र में शनि देव विराजमान होते हैं तो हम अपने व्यक्तियों का पालन पूर्व जन्म में नहीं कर पाये उसकी सजा रूप में इस जन्म में ज्यादा जिम्मेदारियों का बोझ उठाना पड़ेगा, यह निश्चित है। भाग्य भाव पर शनि स्थित होने से किसी भी प्रकार की योग साधना जातक अवश्य करेगा। उसमें एक अनोखी शक्ति देखने को मिलेगी।

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शनि मंगल व गुरु राहु युति

शनि और मंगल की युति शनिवार दिनांक 20/02/16 शाम को 6 बजकर 42 मिनट पर वृश्चिक राशि में हुई। मंगल के वृश्चिक राशि में आने पर शनि और मंगल के बीच द्वंद्व योग का निर्माण हो रहा है। यह योग 18/09/16 को प्रातः 07 बजकर 44 मिनट तक रहेगा। इस अवधि के दौरान अन्य योग भी बने हुए हैं: 1. राहु व गुरु का सिंह में गोचर तथा शनि व मंगल का वृश्चिक में गोचर, जो कि विरोधी शक्तियों का योग है। 2. दोनों युतियाँ स्थिर राशि में हो रही हैं और दोनों एक दूसरे से परस्पर केंद्र में हैं। 3. एक युति अग्नि तत्व में है और दूसरी जल तत्व में है। 4. शनि मंगल की यह युति वृश्चिक राशि में लगभग 6 माह 28 दिन तक रहेगी। 5. मंगल 17 अप्रैल 2016 से 30 जून 2016 तक तथा शनि 25 मार्च से 13 अगस्त तक वक्री रहेंगे। दोनों क्रूर/पापी ग्रह साथ मिलकर वक्र दृष्टि से जगत पर प्रहार कर अशांति फैला सकते हैं।

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शनि व मंगल की वैवाहिक सुख में भूमिका

जातक या जातिका की जन्मकुंडली से विवाह संबंधी सूचना कुंडली के द्वितीय, पंचम, सप्तम एवं द्वादश भावों का विश्लेषण करने से मिलती है। द्वितीय भाव परिवार का द्योतक है तथा पति पत्नी परिवार की मूल इकाई हैं। सातवें भाव से अष्टमस्थ होने के कारण विवाह के प्रारंभ व अंत का ज्ञान देकर यह भाव अपनी भूमिका महत्वपूर्ण बनाता है। अक्सर यह देखा गया है कि प्रायः पापयुक्त द्वितीय भाव विवाह से वंचित रखता है। सप्तम भाव से तो विवाह सुख से संबंधित अनेक तथ्यों का पता चलता ही है। द्वादश भाव भी शैय्या सुख, पति-पत्नी के बीच दैहिक संबंधों के लिए विचारणीय है। स्त्रियों की कुंडली का विचार करते समय सौभाग्य का ज्ञान देने वाले अष्टम भाव का भी अध्ययन करना चाहिए। शुक्र को पुरूष व बृहस्पति को स्त्री के विवाह सुख का कारक ग्रह माना जाता है, जबकि प्रश्नमार्ग के अनुसार स्त्रियों के विवाह का कारक ग्रह शनि है। बृहस्पति और शनि पर विचार करने के साथ-साथ शुक्र पर भी अवश्य विचार करना चाहिए। वैवाहिक विलंब में शनि की भूमिका शनि सभी नवग्रहों में धीरे चलने वाला ग्रह है। यह अपनी एक परिक्रमा लगभग 30 वर्ष में पूर्ण करता है। इसकी इसी मंद गति के कारण फलादेश में भी जब किसी स्थान पर इसकी स्थिति या दृष्टि होती है तब उस स्थान से संबंधित फल को मंद कर देना इसका स्वभाव है। जब सप्तम स्थान पर इस ग्रह की स्थिति या दृष्टि प्रभाव होता है तब यह विवाह में विलंब का कारण स्वयं बनता है। इसीलिए वैवाहिक विलंब में शनि की महत्वपूर्ण भूमिका है। आगे शनि के कारण विवाह में विलंब के कुछ योग दिये जा रहे हैं।

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शनि व शुक्र का विचित्र संबंध

शनि व शुक्र परिचय शनि को “सौरमंडल का गहना” (श्रमूमस व िजीम ैवसंत ैलेजमउ) कहा जाता है क्योंकि इनके चारों ओर अनेक सुन्दर वलय परिक्रमा करते हैं। खगोलीय दृष्टिकोण से शनि एक गैसीय ग्रह है और शनि को सूर्य से जितनी ऊर्जा मिलती है उससे तीन गुनी ऊर्जा वह परावर्तित करता है। शनि को नैसर्गिक रूप से सर्वाधिक अशुभ ग्रह माना गया है जो दुःख, बुढ़ापा, देरी, बाधा आदि का प्रतिनिधित्व करता है। शनि की शुभ स्थिति और स्वामित्व एकाकीपन, स्थिरता, संतुलन, न्यायप्रियता, भय-मुक्ति, सहिष्णुता, तप आदि की प्रवृत्ति भी देते हैं। गोचर में शनि को काल का प्रतिनिधि माना गया है।