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जब वेदना भी कराह उठी

अपने बच्चे के जन्म के समय माता-पिता भगवान को लाख-लाख धन्यवाद देते हैं और दुआ करते हैं कि उनकी उमर भी उनके बच्चे को लग जाए लेकिन वही बच्चा जब किसी भयंकर मुसीबत या रोग का शिकार हो जाए तो मां की ममता कराह उठती है, पिता का दिल रो पड़ता है और मां आंचल फैलाकर भगवान से दुआ कर बैठती है कि ‘हे भगवान! मेरे बच्चे को अपनी शरण में ले ले।’ कैसी होती होगी उसकी विवशता कि जिस बच्चे के लिए उसने इतनी मिन्नतें कीं, दिन-रात जिसे छाती से चिपकाए रखा, पाला पोसा, परवान चढ़ाया, वही उसके सामने मृत्यु तुल्य कष्ट भोग रहा हो और वह कुछ नहीं कर पा रही हो। मां की उसी कराहती ममता, उसकी विवशता को चित्रित करती प्रस्तुत है एक सच्ची कहान

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ज्योतिष अंतिम सत्य की ओर एक कदम

1. विषय प्रवेश हमारे वेदों और पुराणों में भारत की सत्य और शाश्वत आत्मा निहित है और इन्हें समझे बगैर भारतीय परम्परा एवं दृष्टिकोण को समझना सम्भव भी नहीं है। शास्त्रों में ज्योतिष को वेदों के नेत्र (ज्योतिषम् वेदानां चक्षु) की संज्ञा प्राप्त है और प्राचीन समय से ही ज्योतिषीय ज्ञान द्वारा मानव की सेवा की जाती रही है। समय के साथ-साथ इसकी अलग-अलग शाखाएं निकलती रहीं, जैसे सामुद्रिक विज्ञान, वास्तु शास्त्र, अंक विज्ञान, टैरो आदि।

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ज्योतिष एवं आयुर्वेद

ज्योतिष शास्त्र एवं आयुर्वेद दोनों वेदों के अंग हैं जहां आयुर्वेद रोग का उपचार करने में सक्षम है वहीं ज्योतिष शास्त्र मानव शरीर में होने वाले रोगों की पूर्व जानकारी देने में सक्षम है। यदि रोग के कारणों की सही जानकारी हो, तो उपचार भी सही एवं सुचारू रूप से कर रोग मुक्त हो सकते हैं।

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ज्योतिष एवं आयुर्विज्ञान

ज्योतिष एवं आयुर्वेद में काफी समानता है। आयुर्वेद जहां रोगों के ज्योतिष एवं आयुर्वेद में काफी समानता है। आयुर्वेद जहां रोगों के उपचार करने में सक्षम है वहीं ज्योतिष शास्त्र व्यक्ति को किस समय कौन सा रोग होगा इसकी जानकारी देता है। यदि ज्योतिष और आयुर्विज्ञान दोनों का ज्ञान हो जाए तो व्यक्ति रोग से बचाव के कई आयुर्विज्ञान दोनों का ज्ञान हो जाए तो व्यक्ति रोग से बचाव के कई आयुर्विज्ञान दोनों का ज्ञान हो जाए तो व्यक्ति रोग से बचाव के कई मार्ग खोज सकता है। पढिए ज्योतिष एवं आयुर्विज्ञान पर आधारित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी...

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ज्योतिष एवं आयुर्विज्ञान

ज्योतिष शास्त्र एवं आयुर्वेद दोनों ही वेदांग अर्थात वेदों के अंग है। जहां आयुर्वेद रोग का उपचार करने में सक्षम है। वहीं ज्योतिष शास्त्र मानव शरीर में पनपने वाले रोगों की पूर्व जानकारी देने में सक्षम है। यदि रोग के कारणों की सही जानकारी हो, तो उपचार भी सही एवं सुचारू रूप से

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ज्योतिष एवं मधुमेह

मधुमेह के ज्योतिषीय योग 1. गुरु नीच राशि या षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में हो। 2. शनि तथा राहु, गुरु से युति या दृष्टि द्वारा पीड़ित करते हों। 3. अस्त गुरु-राहु केतु अक्ष पर हो। 4. शुक्र षष्ठ भाव में, गुरु के द्वारा द्वादश भाव से दृष्ट हो। 5. पंचमेश 6, 8, 12 वें भावेशों से युक्त हो। 6. वक्री गुरु त्रिक भाव में पीड़ित हो। यकृत और अग्न्याशय पंचम भाव के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। इनके एक भाग का कारक गुरु तथा दूसरे भाग का शुक्र है। शुक्र शरीर की ‘हार्मोन’ प्रणाली का भी कारक है। अतः पंचम, गुरु तथा शुक्र की भूमिका रहती है।