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कैसे हो शनि की पीड़ा से बचाव?

शनि की दशा आने पर जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं। शनि प्रायः किसी को क्षति नहीं पहुंचाता लेकिन मतिभ्रम की स्थिति अवश्य पैदा करता है। ऐसी स्थिति में शनि शांति के उपाय रामबाण का कार्य करते हैं। शनि से प्राप्त कष्टों से बचाव की विस्तृत जानकारी के लिए पढ़िए यह आलेख...

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कस्पल पद्धति

कस्पल ज्योतिष का आविष्कार श्री एस. पी. खुल्लर द्वारा उनके कई वर्षों के शोध और अथक प्रयासों के बाद सफल हो पाया है। खुल्लर जी ने यह प्रयास किया कि किस प्रकार वैज्ञानिक तरीके से पवित्र ज्योतिष के विषय को पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया जाय ताकि पाठकगण और ज्ञानी ज्योतिषी एवं पंडित इसे समझकर भेद कर पायें कि कस्पल इंटरलिंक थ्योरी के माध्यम से दी गई भविष्यवाणियां सौ प्रतिशत सही उतरती हैं।

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कस्पल पद्धति

जातक का वैवाहिक जीवन सुखमय रहने वाला है यह कार्य स्पेसीफाई करने का है कि जातक शादी के बाद सुखमय विवाहित जीवन व्यतीत करने वाला है। इसी विचार को हम एक और उदाहरण के साथ प्रस्तुत करना चाहेंगे। मान लीजिये 6ठे भाव की इन्वोल्वमेंट होकर 8वें भाव से कम्मिटमेंट हो जाती है तो इस केस में जातक की साधारण बीमारी, गंभीर बीमारी में बदलने वाली है

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कस्पल पद्धति

कस्पल कंुडली में कस्पल लिंकेज/योग किस प्रकार स्थापित होते हैं? पाठकों अब एक उदाहरण कंुडली की सहायता से हम यहाँ समझने का प्रयत्न करेंगे कि कस्पल कुंडली में कस्पल इन्टरलिंक या कस्पल योग किस प्रकार स्थापित होते हैं? उदाहरण कुंडली संख्या 1, एक ऐसे जातक की है जिसका जन्म 07 नवम्बर 1980 को मध्य रात्रि 02.15.48 बजे दिल्ली के रेखांश/अक्षांश 77.14 पूर्व/28.34 उत्तर पर हुआ है। इस कुंडली का बर्थ टाईम रेक्टिफिकेशन (जन्म समय का शुद्धिकरण) कर दिया गया है।

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कस्पल पद्धति

कस्पल कंुडली में सिगनिफिकेटर का तात्पर्य जैसा कि हम जानते हैं नक्षत्र थ्योरी का नियम है कि कुडंली में हर ग्रह अपने नक्षत्रस्वामी ग्रह का फल प्रदान करता है। ग्रह अपना फल प्रदान करने में तभी सक्षम होता है जब किसी विषिष्ट कुडंली में उस विषिष्ट ग्रह का पोजीषनल स्टेटस (स्थान बल) होता है। इस प्रकार कोई भी ग्रह सिर्फ दो ही प्रकार से फल प्रदान करने में सक्षम होता है। पहला जब ग्रह अपने नक्षत्र स्वामी ग्रह का फल प्रदान करता है जिसे हम स्टैलर स्टेटस के रूप में जानते हैं और दूसरा जब ग्रह का अपना पोजीषनल स्टेटस होता है जिसे हम पोजीषनल स्टेटस के रूप में जानते हैं। आप इस विचार को भली प्रकार से समझ चुके होंगे कि कोई भी ग्रह सिर्फ दो ही प्रकार से फल प्रदान करने में सक्षम होता है (1)

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कस्पल पद्धति

लेख में प्रस्तुत कुंडली एक जातक की है जिसका जन्म 27.9.1974 को रात 23.05 बजे कोलकाता में हुआ। यह लेख लिखने तक इस जातक की आयु 41 वर्ष की हो चुकी है तथा अभी तक इस जातक का विवाह होना संभव नहीं हो पाया। कस्पल कुंडली के माध्यम से हम यहां यह सुनिश्चित कर पायेंगे कि इतनी आयु होने के बाद भी जातक का विवाह क्यों नहीं हुआ तथा भविष्य में भी क्या कोई आशा है इस जातक का विवाह होने की।

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कस्पल पद्धति (खुल्लर जी)

कस्पल ज्योतिष पद्धति में कस्पल कुंडली को किस प्रकार पढ़ा जाए? कस्पल कुंडली सिर्फ एक ही पृष्ठ में बन जाती है। इसे आप उदाहरण कंुडली ‘एक’ से समझने का प्रयास करें। इस कुंडली में सबसे ऊपर आपको बेसिक डिटेल मिल जायेगी यानि कि जातक का नाम, जन्म का समय, जन्म का स्थान इत्यादि। कंुडली बनाने का सिस्टम, रूलिंग प्लैनेट (किसी विशिष्ट क्षण को कंट्रोल करने वाले ग्रह) इत्यादि। आगे आप पायेंगे बाएं में राशि चार्ट तथा दायें में भाव चार्ट, उसके नीचे ग्रहों की स्थिति वाला Planetary Position Chart चार्ट सब-सब लेवल तक, इसी के दायें में दशा स्वामी ग्रह अपने समाप्ति काल की अवधि तक।

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कस्पल पद्धति बर्थ टाईम रेक्टीफिकेशन

हर कस्पल कुंडली में सर्वप्रथम बर्थ टाईम रेक्टीफिकेशन (जन्म समय का शुद्धिकरण) करना अनिवार्य है क्योंकि कस्पल कुंडली में जिस भी भाव का प्रोमिस/ पोटेंशियल पढ़ना हो तो उस विशिष्ट भाव के सब सब लाॅर्ड से पढ़ा जाता है। सर्वप्रथम लग्न के सब सब लाॅर्ड को फिक्स किया जाता है और उसी के अनुसार बाकी बचे भावों की रचना होती है।

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कस्पल पद्धति बर्थ टाईम रेक्टीफिकेशन पार्ट-2

पिछले लेख में रुलिंग प्लैनेट्स की सहायता से कुंडली को ठीक (करेक्ट) करने का तरीका प्रस्तुत किया गया था। अब इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए किसी भी कस्पल कुण्डली का बर्थ टाईम रेक्टीफाई किस प्रकार इवेंट वैरीफिकेशन की सहायता से किया जाए, इसे समझने का प्रयास करेंगे। इवेंट वैरीफिकेशन का तात्पर्य है कि जातक के अपने जीवन काल में जो-जो घटनाएं या दुर्घटनाएं घटित हुई हैं उस विशिष्ट घटना के दिन और समय के आधार पर कुण्डली का समय मिनट और सेकंड लेवल तक करेक्ट करना ।